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किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

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अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

get more info दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

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